जब भी शिक्षकों का प्रशिस्क्षण किया जाता है, उन्हें तरह-तरह की घिसी-पिटी बातें बताई जाती हैं. 'आप देश का भविष्य हैं, बहुत ज़िम्मेदारी है आपके कन्धों पर, जाइए जा कर खूब मेहनत करिए.' है न? सुनाया जाता है कि नहीं? और बार-बार सुन कर कान पक चुके हैं कि नहीं?
दरअसल यह बड़ा मासूम सा विचार है - जैसे कि केवल मेहनत करने से सब कुछ हो जाता है. नहीं भैय्या, दिमाग लगाना पड़ता है, दिमाग! जिन लोगों का काम केवल मेहनत का ही माना जाता है, वे लोग अपना दिमाग लगा कर ही ठीक से काम कर सकते हैं -- जैसे कि ट्रक से सामान उतारने वाले लेबरर, खेत में काम करता किसान, गड्ढा खोदने या सिर पर मलबा ढोने वाले लोग. अगर वे बिना सोचे-समझे अपना काम करें तो उन्हें चोट लग सकती है, नुकसान हो सकता है, फटकार लग सकती है.... तो शिक्षक के मामले में तो ये बात कहीं और ज्यादा लागू होगी!
स्मार्ट शिक्षक कक्षा में बच्चों की भूमिका बहुत अधिक बढाते हैं - और केवल साफ़-सफाई और रख-रखाव के मामले में ही नहीं, बल्कि सीखने की प्रक्रिया में. उदहारण के लिए चौथी कक्षा की शिक्षिका ने बच्चों से कहा,"जानते हो इस कहानी में एक दिन जब सिंह सो कर उठा, तो उसके सिर पर बाल ही नहीं थे. फिर उसने क्या किया अपने बाल वापिस पाने के लिए? पढो और पता करो!'
जब बच्चे पढने लगे तो वह उन बच्चों के साथ बैठ गयी जो कि पीछे छूटने के खतरे में थे. थोड़े समय के बाद उसने सबसे कहा, 'पढ़ कर जो शब्द समझ में नहीं आते हैं, उन पर गोला लगाओ. फिर अपने पड़ोसी से पूछो.' जब सबने यह काम कर लिया तो उसने समूह को कहा कि एक दूसरे से गोले लगे शब्दों के अर्थ पता करो. जो तुम लोग नहीं कर पाओगे, वे शब्दों को में बता दूँगी.'
आप सोच सकते होंगे कि इसके बाद उसने क्या किया होगा. पूरे समय इस शिक्षिका का हरेक बच्चा काम पर लगा रहा, सीखता रहा, दूसरों को सिखाता रहा, और वह खुद बहुत ही रेलाक्स्ड रही!
क्या हम भी इस तरह थोड़े आलसी और स्मार्ट बन सकते हैं?
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